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दिमाग– बहते जल को पी ले तू
रूह को गीला करले तू
सोच नही ये पानी है
इसकी प्यास दिवानी है
तेरे जर्रे जर्रे मे है प्यास
फिर है तू क्यू उदास
कदम बढाकर रखले आगे
थोडी सी तो कीचड है
आगे तो बस पानी है
त्रप्त हो जाएगी रूह तेरी
इससे प्यास बुझाले तू
नजर घुमाकर देखो बगली
शेर भी इसको पीता है
दूर खडा है गीदड देखो
बो भी इससे जीता है
दिल–फिसल न जाऊ इस कीचड मै
:सभंल के पाँव रखता हूँ
हाथ मे लेके इस पानी को
थोडा सा मे चखता हू
ये पानी तो गंदा है
फिर भी प्यास बुझाता हूँ
पानी तो बस पानी है
इसी से काम चलाता हूँ
आत्मा–पीते ही इस पानी को
दिल मेरा घबडाता है
घबडाते ही इन आखों मे
शेर नजर वो आता है
प्यार से खाता उस गीदड को
मुँह पर जीभ फिराता है
प्यास लगी बेचारे को
फिर यही पर आता है
देख के ये सारा नजारा
अब समझ मे आता है
कि शेर माँस क्यू खाता है
विचलित होती प्यास को
धैर्य से मै समझाता हूँ
आशा रख थोडी देर सही
पावन जल मे लाता हूँ
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